Posts

कुंडलिनी ऊर्जा और सूक्ष्म नाड़ियाँ – सुषुम्ना, इडा और पिंगला

Image
  हम उन्हें देख नहीं सकते, लेकिन सूक्ष्म शरीर से प्रवाहित होने वाली ऊर्जा के चैनल में अपार शक्ति होती है और शरीर तथा मन में हमें बेहतर महसूस कराने में हमारी मदद करने की क्षमता होती है। हम तीन ऊर्जा चैनलों के बारे में बताते हैं जिनके बारे में आपने योग कक्षा में सुना होगा - सुषुम्ना, इडा और पिंगला - और शांति, रचनात्मकता, ऊर्जा और शायद आत्मज्ञान के लिए उनका उपयोग कैसे करें... मूल एक्स-रे और एमआरआई से हज़ारों साल पहले, प्राचीन सभ्यताएँ आंतरिक शरीर की जटिल कार्यप्रणाली को बहुत अलग तरीके से समझती थीं। पूरे पूर्व में, पारंपरिक चीनी चिकित्सा (TCM), तिब्बती चिकित्सा और आयुर्वेद जैसी समग्र चिकित्सा प्रणालियों ने समझा कि भले ही हम उन्हें देख नहीं सकते, लेकिन हमारे भीतर अनगिनत चैनल, भंवर और ऊर्जा की परतें हैं। TCM ऊर्जा के इन चैनलों को मेरिडियन रेखाएँ कहता है, जबकि भारत के योगियों ने सबसे पहले उन्हें नाड़ियाँ कहा था। यदि आप कभी कुंडलिनी योग कक्षा में गए हैं, प्राणायाम या विज़ुअलाइज़ेशन का अभ्यास किया है, तो आप इन सूक्ष्म ऊर्जा चैनलों से पहले भी परिचित हो सकते हैं, ल

॥ लिंगाष्टकम् ॥

  ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिङ्गं, निर्मलभासित शॊभित लिङ्गम् । जन्मज दुःख विनाशक लिङ्गं, तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 1 ॥ दॆवमुनि प्रवरार्चित लिङ्गं, कामदहन करुणाकर लिङ्गम् । रावण दर्प विनाशन लिङ्गं, तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 2 ॥ सर्व सुगन्ध सुलॆपित लिङ्गं, बुद्धि विवर्धन कारण लिङ्गम् । सिद्ध सुरासुर वन्दित लिङ्गं, तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 3 ॥ कनक महामणि भूषित लिङ्गं, फणिपति वॆष्टित शॊभित लिङ्गम् । दक्ष सुयज्ञ निनाशन लिङ्गं, तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 4 ॥ कुङ्कुम चन्दन लॆपित लिङ्गं, पङ्कज हार सुशॊभित लिङ्गम् । सञ्चित पाप विनाशन लिङ्गं, तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 5 ॥ दॆवगणार्चित सॆवित लिङ्गं, भावै-र्भक्तिभिरॆव च लिङ्गम् । दिनकर कॊटि प्रभाकर लिङ्गं, तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 6 ॥ अष्टदलॊपरिवॆष्टित लिङ्गं, सर्वसमुद्भव कारण लिङ्गम् । अष्टदरिद्र विनाशन लिङ्गं, तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 7 ॥ सुरगुरु सुरवर पूजित लिङ्गं, सुरवन पुष्प सदार्चित लिङ्गम् । परात्परं परमात्मक लिङ्गं, तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 8 ॥ लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठॆश्शिव सन्निधौ । शिवलॊकमवाप्न

॥ काशी विश्वनाथाष्टकम ॥

  गङ्गा तरङ्ग रमणीय जटा कलापं, गौरी निरन्तर विभूषित वाम भागं। नारायण प्रियमनङ्ग मदापहारं, वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाधम्॥(१) वाचामगॊचरमनॆक गुण स्वरूपं, वागीश विष्णु सुर सॆवित पाद पद्मं। वामॆण विग्रह वरॆन कलत्रवन्तं, वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाधम्॥(२) भूतादिपं भुजग भूषण भूषिताङ्गं, व्याघ्राञ्जिनां बरधरं, जटिलं, त्रिनॆत्रं। पाशाङ्कुशाभय वरप्रद शूलपाणिं, वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाधम्॥(३) सीतांशु शॊभित किरीट विराजमानं, बालॆक्षणातल विशॊषित पञ्चबाणं। नागाधिपा रचित बासुर कर्ण पूरं, वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाधम्॥(४) पञ्चाननं दुरित मत्त मतङ्गजानां, नागान्तकं धनुज पुङ्गव पन्नागानां। दावानलं मरण शॊक जराटवीनां, वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाधम्॥(५) तॆजॊमयं सगुण निर्गुणमद्वितीयं, आनन्द कन्दमपराजित मप्रमॆयं। नागात्मकं सकल निष्कलमात्म रूपं, वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाधम्॥(६) आशां विहाय परिहृत्य परश्य निन्दां, पापॆ रथिं च सुनिवार्य मनस्समाधौ। आधाय हृत्-कमल मध्य गतं परॆशं, वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाधम्॥(७) रागाधि दॊष रहितं स्वजनानुरागं, वैराग्य शान्ति निलयं गिरिजा सहायं। माधुर्य धैर्य सु

॥ अत्रि स्तुति ॥

  नमामि भक्त वत्सलं, कृपालु शील कोमलं। भजामि ते पदांबुजं, अकामिनां स्वधामदं॥ (१) भावार्थ : हे प्रभु! आप भक्तों को शरण देने वाले है, आप सभी पर कृपा करने वाले है, आप अत्यंत कोमल स्वभाव वाले है, मैं आपको नमन करता हूँ। हे प्रभु! आप कामना-रहित जीवों को अपना परम-धाम प्रदान करने वाले है, मैं आपके चरण कमलों का स्मरण करता हूँ। (१) निकाम श्याम सुंदरं, भवांबुनाथ मंदरं। प्रफुल्ल कंज लोचनं, मदादि दोष मोचनं॥ (२) भावार्थ : हे प्रभु! आप आसक्ति-रहित हैं, आप श्याम वर्ण में अति सुन्दर हैं, आप ब्रह्माण्ड को मंदराचल पर्वत के समान धारण किये हुए हैं। हे प्रभु! आपके नेत्र खिले हुए कमल के समान है, आप ही अभिमान आदि विकारों का नाश करने वाले हैं। (२) प्रलंब बाहु विक्रमं, प्रभोऽप्रमेय वैभवं। निषंग चाप सायकं, धरं त्रिलोक नायकं॥ () भावार्थ : हे प्रभु! आप लंबी भुजाओं वाले हैं, आपका पराक्रम और ऐश्वर्य कल्पना से परे हैं। हे प्रभु! आप धनुष-बाण और तुणींर (बाण रखने वाला तरकस) धारण करने वाले हैं, आप ही तीनों लोकों के स्वामी हैं। ( (३) दिनेश वंश मंडनं, महेश चाप खंडनं॥ मुनींद्र संत रंजनं,

॥ मधुराष्टकम् ॥

  अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरम्। हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥१॥ भावार्थ : हे भगवान श्रीकृष्ण! आपके होंठ मधुर हैं, आपका मुख मधुर है, आपकी ऑंखें मधुर हैं, आपकी मुस्कान मधुर है, आपका हृदय मधुर है, आपकी चाल मधुर है, मधुरता के राजेश्वर श्रीकृष्ण आपका सभी प्रकार से मधुर है ॥१॥ वचनं मधुरं चरितं मधुरं, वसनं मधुरं वलितं मधुरम्। चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥२॥ भावार्थ : हे भगवान श्रीकृष्ण! आपका बोलना मधुर है, आपका चरित्र मधुर है, आपके वस्त्र मधुर हैं, आपके वलय मधुर हैं, आपका चलना मधुर है, आपका घूमना मधुर है, मधुरता के राजेश्वर श्रीकृष्ण आपका सभी प्रकार से मधुर है ॥२॥ वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः, पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ। नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥३॥ भावार्थ : हे भगवान श्रीकृष्ण! आपकी बांसुरी मधुर है, आपके लगाये हुए पुष्प मधुर हैं, आपके हाथ मधुर हैं, आपके चरण मधुर हैं , आपका नृत्य मधुर है, आपकी मित्रता मधुर है, मधुरता के राजेश्वर श्रीकृष्ण आपका सभी प्रकार से मधुर है ॥३॥ गीतं मधुरं पीतं मधुरं, भुक्तं

॥ श्रीकृष्ण चालीसा ॥

  ॥ दोहा ॥ बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम। अरुण अधर जनु बिम्बफल, नयन कमल अभिराम॥ पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज। जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥ ॥ चौपाई ॥ जय यदुनंदन जय जगवंदन, जय वसुदेव देवकी नन्दन॥ (१) जय यशुदा सुत नन्द दुलारे, जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥ (२) जय नट-नागर नाग नथइया, कृष्ण कन्हैया धेनु चरइया॥ (३) पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो, आओ दीनन कष्ट निवारो॥ (४) वंशी मधुर अधर धरि टेरौ, होवे पूर्ण विनय यह मेरौ॥ (५) आओ हरि पुनि माखन चाखो, आज लाज भक्तन की राखो॥ (६) गोल कपोल चिबुक अरुणारे, मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥ (७) रंजित राजिव नयन विशाला, मोर मुकुट वैजन्तीमाला॥ (८) कुंडल श्रवण पीत पट आछे, कटि किंकिणी काछनी काछे॥ (९) नील जलज सुन्दर तनु सोहे, छबि लखि सुर नर मुनिमन मोहे॥ (१०) मस्तक तिलक अलक घुँघराले, आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥ (११) करि पय पान पूतनहि तार्‌यो, अका बका कागासुर मार्‌यो॥ (१२) मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला, भई शीतल लखतहिं नंदलाला॥ (१३) सुरपति जब ब्रज चढ़्‌यो रिसाई, मूसर धार वारि वर्षाई॥ (१४) लगत

॥ राधाकृष्णाष्टकम् ॥

  कृष्णप्रेममयी राधा राधाप्रेममयो हरिः। जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (१) भावार्थ : श्रीराधारानी, भगवान श्रीकृष्ण में रमण करती हैं और भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराधारानी में रमण करते हैं, इसलिये मेरे जीवन का प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो। (१) कृष्णस्य द्रविणं राधा राधायाः द्रविणं हरिः। जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (२) भावार्थ : भगवान श्रीकृष्ण की पूर्ण-सम्पदा श्रीराधारानी हैं और श्रीराधारानी का पूर्ण-धन श्रीकृष्ण हैं, इसलिये मेरे जीवन का प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो। (२) कृष्णप्राणमयी राधा राधाप्राणमयो हरिः। जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (३) भावार्थ : भगवान श्रीकृष्ण के प्राण श्रीराधारानी के हृदय में बसते हैं और श्रीराधारानी के प्राण भगवान श्री कृष्ण के हृदय में बसते हैं , इसलिये मेरे जीवन का प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो। (३) कृष्णद्रवामयी राधा राधाद्रवामयो हरिः। जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (४) भावार्थ : भगवान श्रीकृष्ण के नाम से श्रीराधारानी प्रसन्न होती हैं और श्रीराध